घरौंदा

धूल में नहाए शैतान बच्चे  खेल रहे हैं घरौंदा-घरौंदा।  जोड़ रहे हैं ईंट के टुकड़े, पत्थर, सीमेंट के गुटके  बना रहे हैं नन्हे-नन्हे घर  हँस रहे हैं, तालियाँ पीट रहे हैं।

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जिम्मेदार कौन

वह बोलता जा रहा था, ‘आपकी कहानियों की चर्चा कहाँ नहीं होती। मैंने तो सुदामा कॉलेज में कहानियों पर आपका आख्यान सुना था।

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कथरियाँ

वे धूप की कतरनों पर फैलती हैं  तो उठती है, हल्दी और सरसों के तेल की पुरानी सी गंध।  गौने में आई उचटे रंग की साड़ियाँ  बिछ जाती हैं महुए की ललायी कोपलों की तरह  जड़ों की स्मृतियों पर।

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राहुल सांकृत्यायन की विदेश-यात्रा

राहुल जी बहुआयामी चेतना के घुमक्कड़ विद्वान थे। उनका मानना था कि घुमक्कड़ी से मनुष्य में समता-दृष्टि उत्पन्न होती है।

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कबीराना अंदाज़ के दोहे

संग्रह के दोहों में वैविध्य है। कहीं प्रतिरोध के स्वर बुलंद किए गए हैं, तो कहीं सत्ता-व्यवस्था पर करारी चोट की गई है। कुछ दोहे नीतिपरक हैं, तो कुछेक राजनीति, शिक्षा, संस्कृति और जीवन-दर्शन से जुड़े हुए हैं।

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नयनों के डोरे लाल गुलाल भरे

मधु-ऋतु-रात, मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खो ली, खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली–बनी रति की छवि भोली।

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