गत्यात्मक रहस्यवाद
बर्गसां ने हिंदू रहस्यवाद के स्वरूप का निर्धारण करते हुए उसे स्थित्यात्मक ठहराया है क्योंकि इसमें गतिशील जीवन का स्वर मुखरित नहीं; यह जीवन से एक प्रकार का पलायन है।
बर्गसां ने हिंदू रहस्यवाद के स्वरूप का निर्धारण करते हुए उसे स्थित्यात्मक ठहराया है क्योंकि इसमें गतिशील जीवन का स्वर मुखरित नहीं; यह जीवन से एक प्रकार का पलायन है।
शरीर से स्थूल, वय से चालीस के लगभग! रूप भद्रतापूर्ण। आँखें वेदनामयी। धोती साधारण–न मैली न उजली। हाथों में चाँदी की चूड़ियाँ।
1890 से चीनी साहित्य का वर्तमान युग शुरू होता है। तब जो वह साहित्य पश्चिमी संस्कृति और साहित्य के संपर्क में आया तो उसमें आधारभूत परिवर्तन होने लगे।
नया लेखक क्या करे बिचारा? कोई है काँटों का रास्ता दिखाता
महात्मा गाँधी सबकी रामबाण दवा बतला गये हैं– राम-नाम, ईश्वर-प्रार्थना। पर ईश्वर-प्रार्थना अब किसी को नहीं सुहाती। सब लोग ‘राम-नाम में आलसी, भोजन में हुसियार’ हो गए हैं।
अपने रूप और वेष दोनों में वे इतने अधिक राष्ट्रीय हैं की भीड़ में मिल जाने पर शीघ्र ही खोज नहीं निकाले जा सकते।