भारतीय हिंदी समाज और प्रेमचंद

युग प्रतिनिधि कलाकार प्रेमचंद हिंदी उपन्यास के प्रेरणासूत्र और प्रकाश-स्तंभ हैं। उन्होंने हिंदी उपन्यास को उसकी सहजभूमि पर प्रतिष्ठित ही नहीं किया, भावी उपन्यासकारों के लिए दिशा-संकेत भी दिए।

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कुछ पूजा के आयोजन-सा होने लगता

कुछ पूजा के आयोजन-सा होने लगता जब मेरे मन में प्यार देवता-सा चुप-चुप आने लगता मन मंदिर होने लगता ऐसा रूपक सजने लगता

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स्त्री-उत्थान की गाथा

विशुद्धानंद की ‘माथे माटी चंदन’ जो भोजपुरी भाषा में तेरह कड़ियों की नाट्य धारावाहिक पुस्तक है, पूर्णतः ग्रामीण क्षेत्र में आतीं

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व्यंग्य की तिरछी पगडंडियों पर

संपदा पांडेय कृत ‘भारतीय नारी: सृजन और व्यंग्य-कर्म’ पुस्तक संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की कनिष्ठ शोधवृत्ति के लिए तैयार

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नवगीत की वस्तुवादी आलोचना

‘नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध’ समीक्षक एवं नवगीतकार राधेश्याम बंधु की नवगीत की आलोचना की यह तीसरी पुस्तक है।

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भ्रष्ट व्यवस्था की उत्सवधर्मिता का आख्यान

सूखा पानी गाँव के ओलापीड़ित किसान राम प्रसाद ने कुएँ में रस्सी से लटककर आत्महत्या कर ली, ठीक उसी समय सरकारी अमले नगर उत्सव में व्यस्त थे।

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