वृंदावन

वृंदावन लाल वर्मा का मेरा साथ तीस-पैंतीस बरसों का है। वे मुझे बड़ा भाई मानते हैं, ‘भाई साहब’ कहते हैं, और मैं उन्हें ‘वृंदावन’ कहता हूँ।

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प्रसाद की याद

अनुदिन हमारे घंटों पर घंटे साथ बीता करते फिर भी मन न अघाता। प्रसाद जी कितने ही विषयों के आकर, जो प्रसंग चल पड़ता उसी में स्वाद मिलता।

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‘पुराणमित्येव न साधु सर्वम्’

प्राचीनता की पूजा और नवीनता को शक की नजर से देखना–यह भारतीय संस्कृति की अपनी विशेषता रही है।

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प्राण, तुम्हारे मधुर बोल ही इन गीतों में फूट रहे हैं!

प्राण, तुम्हारे मधुर बोल ही इन गीतों में फूट रहे हैं!

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