रगों में लहू
पिता, उस दिन तुम्हारे वो कदम जो जा रहे थे मृत्यु की ओर मेरे पैरों में भर रहे थे गीत मेरे जीवन में आ रही थी सुबह!
पिता, उस दिन तुम्हारे वो कदम जो जा रहे थे मृत्यु की ओर मेरे पैरों में भर रहे थे गीत मेरे जीवन में आ रही थी सुबह!
अरविंद कुमार हिंदी की विभिन्न बोलियों के शब्दों की ऐसी झड़ी लगा देते थे मानो मशीनगन से गोलियाँ छूट रही हों।
पर आज तिनके चोंच में दबाए जब भी थी उड़ान उसी पेड़ पर नशेमन की चाह में किसी पारदर्शी दीवार से टकरा औंधे मुँह जा गिरी थी टूट गए थे
बाबा कहीं ऊब न जाएँ सो बागवानी कर जी बहला लें यूँ भी सब्जियाँ बहुत महँगी हैं माँ गाँव में कभी गाय रखती थी
कौन नहीं जानता विश्व के कोने-कोने में आबाद आतंकवाद विश्व व्यापार केंद्र और पेंटागन पर हमले के पूर्व जब जिसको जैसे चाहा जी भर कर नोंचा है
दोस्ती के नाम पर कुछ भी कर गुजरेंगे ये हमारी कायरता नहीं महानता का है प्रमाण कि अपने जवानों की जघन्य हत्याओं के बावजूद हम शांति का चालीसा पढ़ रहे हैं