कवि डबराल को पढ़ा

धूप के शब्दकोष में  खोजी-जुगनू  के न दिख रहे श्रम की कवितालमसम की कवितान उँगली को पकड़ती  सीढ़ीयाँ चढ़ती  न मोर्चा खड़ा करने को दौड़ती-हाँफतीऐनक सुधारती कविता  बटन टाँकती 

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माटी की सोंधी ख़ुशबू

कहानी दोहरे व्यक्तित्व वाले लोगों पर और ओछी सोच रखने वालों पर व्यंग्य कसती है। ‘मेहनताना’ कहानी में एक आदर्शवादी शिक्षक सुधीर के जीवन में आने वाली कठिनाइयों का यर्थाथ चित्रण किया गया है

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संताप

कुम्हला जाता है हृदय इन अघातों से  मैं शक्तिहीना दु:ख की रोटियाँ सेंकते  जला लेती हूँ उँगलियाँ  फिर भी रह जाते हैं  मेरे शब्द वंचित  उस दहक से  जिसने मेरे पोर झुलसा दिए

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गाँव की औरतें

मेरे गाँव की औरतें चूल्हे बनाती हैं  ढाल देती हैं  आकार गढ़ती हैं  मेरे गाँव की औरतें आँगन लीपती हैं  कँगूरे बनाती हैं  उतार-चढ़ाव का ध्यान रखती हैंउनके फुर्तीले हाथ देखकर  मैं अक्सर सोचती हूँ 

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सिलबट्टा

वो पीसती है हरी-हरी नरम पत्तियाँ  और गहरे काले लम्हे  सिलेटी से चुभने वाले किस्से  वो पीसती है मीठे काजू, भीगे बादाम  और पीस देना चाहती है 

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गजलों के गाँव में

यही कारण है कि बीते कई वर्षों से हिंदी गजलें ‘नई धारा’ में ससम्मान प्रकाशित होती रहीं। पाठकों-गजलकारों ने ‘नई धारा’ का गजल-अंक प्रकाशित करने का दवाब भी बनाया। आखिरकार हमने सबका सम्मान करते हुए गजलों के गाँव में पर्यटन का मन बनाया और यह अंक आपके सामने है। आशा है गजलों के गाँव में हमारा पर्यटन पाठकों को पसंद आएगा।

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