तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!
तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!
लोहे के पेड़ हरे होंगे!
लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गान प्रेम का गाता चल
टॉल गुरु
भट्टजी एकांकियों के लिए प्रसिद्घ हैं। कविरूप में भी इनकी प्रसिद्धि है! किंतु यह शब्दचित्र देखिए, कैसा सजीव। शब्द रेखा बनकर बोल रहे हैं! कलाकार हर क्षेत्र में कलाकार है!
नई समीक्षा पर मार्क्स और फ्रायड का प्रभाव
मार्क्सवादी सामाजिक-आार्थिक सिद्धांत का जब काव्य अथवा साहित्य में प्रयोग किया जाता है, तब उसकी स्थिति बहुत कुछ असंगत और असाध्य-सी हो जाती है।
रवींद्रनाथ के वसंत गीत
वसंत संबंधी अभी तक की मान्य कवि-प्रसिद्धियों एवं रूढ़ियों के बाद भी रवींद्रनाथ ने नई रूढ़ियों की सृष्टि की है। रवींद्रनाथ ने वसंत के साथ एकात्मता का बोध किया है।