फूल की चिंता करे क्या, शूल चुभते जा रहे हैं?

फूल की चिंता करे क्या, शूल चुभते जा रहे हैं? मुस्कराते अधर दल पर

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विभिन्न ‘वाद’ और आधुनिक हिंदी कविता

इन ‘वादों’ की प्रवृत्ति हममें प्रतिहिंसा की भावना जागरुक करती है जो कला और साहित्य के कलाकार और साहित्यकार को कोसों दूर हटा दे सकती है।

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अग्नि-स्नान

पुजारी की आँख खुली! घबराई आँखों से चारों तरफ देखा! कुछ नहीं! सब तो ठीक था। शयन-कक्ष का द्वार बंद था। शमा मधुर प्रकाश बिखेर रही थी। “कुछ नही! भ्रम है मेरा!” पुजारी ने अपने को संतोष देते हुए करवट बदली!

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आदिवासी लोकगीतों में रामचरित्र-चर्चा

रामचरित्र की चर्चा हर भाषा के साहित्य में चमकती ही है; वह संथाली-भाषा के साहित्य में भी ‘नहीं’ की शून्यता को बखूबी पूरा करती है।

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इमाम साहब

इमाम साहब ने मस्जिद का द्वार खोला। चारों चट्टाइयाँ पानी से भींग गई थीं। बाप-बेटी एक दूसरे की ओर ऐसे देखने लगे जैसे बूझ रहे हों ‘अब क्या होगा?

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गत्यात्मक रहस्यवाद

बर्गसां ने हिंदू रहस्यवाद के स्वरूप का निर्धारण करते हुए उसे स्थित्यात्मक ठहराया है क्योंकि इसमें गतिशील जीवन का स्वर मुखरित नहीं; यह जीवन से एक प्रकार का पलायन है।

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