मूढ़ी वाली मौसी

शरीर से स्थूल, वय से चालीस के लगभग! रूप भद्रतापूर्ण। आँखें वेदनामयी। धोती साधारण–न मैली न उजली। हाथों में चाँदी की चूड़ियाँ।

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वर्तमान चीनी साहित्य

1890 से चीनी साहित्य का वर्तमान युग शुरू होता है। तब जो वह साहित्य पश्चिमी संस्कृति और साहित्य के संपर्क में आया तो उसमें आधारभूत परिवर्तन होने लगे।

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 सदाचार से ही सुख सुलभ होगा
Acharya Shivpujan Sahay

सदाचार से ही सुख सुलभ होगा

महात्मा गाँधी सबकी रामबाण दवा बतला गये हैं– राम-नाम, ईश्वर-प्रार्थना। पर ईश्वर-प्रार्थना अब किसी को नहीं सुहाती। सब लोग ‘राम-नाम में आलसी, भोजन में हुसियार’ हो गए हैं।

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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

अपने रूप और वेष दोनों में वे इतने अधिक राष्ट्रीय हैं की भीड़ में मिल जाने पर शीघ्र ही खोज नहीं निकाले जा सकते।

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नरनाहर निराला

“जिस समय रवींद्र का घोड़ा बंगाल से छूटा तो उसकी रास थामने की हिम्मत किसी में नहीं थी। लेकिन मैंने ही उस घोड़े को थाम लिया।...हमारा यह जो रंग है वह असल रंग नहीं। यह तो धूप में काला हो गया है।...इसका, बहुत लंबा हिसाब-किताब है।”

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