गमलों में कल्पनाएँ

कल्पना यथार्थ से भी अधिक कठोर होती हैं  इसे कोमल उँगलियों से भी  स्पर्श मत करो   शरमा जाती है यह छुईमुई की तरह

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तारीखें बदल रहीं

खोयी-खोयी  आँखों में गहरा सन्नाटा है  घर के भीतर-बाहर  नागफनी का काँटा है  ज्ञान न बदला  सिर्फ सूचना-सीखें बदल रहींगहन उमस है 

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आने वाला दिन

श्रम के घर रोटी के भी लाले होंगे  सच के मुँह पर जड़े हुए ताले होंगे  ढाही सिंह को  मारेंगी गायें गाभिनसतरंजी चालें चलता रोवट होगा  हिंसा के गुण गाता अक्षयवट होगा 

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हुआ बहुत हैरान

यहाँ नहीं पनघट है, अब चौपाल नहीं है  गाड़ी के पहिये के ऊपर हाल नहीं है  खाक हुआ चूल्हे में जल जीवन अलाव कायहाँ न जाँता, ढेंकी, रेहट चलते देखे 

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