जाइएगा नहीं

‘आपके सामने चार ऑप्शंस थे, दो आपने गँवा दिए! चाहे तो आप साढ़े छह लाख ले जा सकती हैं। वर्ना...सारे गरीब परदे के सामने बैठे थे। जेब में दस बीस-पचास रुपये रखे।

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चाबी है सब्ज़ियाँ

सब्ज़ियाँ काटते समय भी वह खोई रहती है किसी और दुनिया में खाने बैठो साथ तो खुल जाती है उसकी स्मृतियों की पिटारी उसका गाँव, खेत-खलिहान सब कुछ सब्ज़ियों की उँगली पकड़े आ जाते हैं स्मृतियों से बाहर निकल कर

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तेज़तर होती लौ

जिसकी छुरी की तेज़ धार बिना बटखरे के भी काटती है नपातुला माँस एक दीप जो बुझने के अरसे बाद होता है प्रज्ज्वलित सदियों बाद तेज़तर होती जाती है उसकी लौ!!

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एक नन्ही चाबी

किसी के जनेऊ में बँधी है चाबी किसी किसी के पल्लू में बँधी है एक नहीं, दो नहीं, कई-कई चाबियाँ मैं कहाँ रखूँ तुम्हारी दी हुई एक नन्ही चाबी?

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वे कविताएँ

वे कविताएँ जो किसी संग्रह में नहीं हैं वे सब तुम्हारे पास हैं। वे सब रहेंगी तुम्हारे पास मेरे पास भी नहीं किसी के पास नहीं।

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