नई धारा संवाद : कथाकार चित्रा मुदगल
ये कैसा बड़प्पन कि हमारे खेतों के अनाज जब इनके आँचल में जाता है तो वह छूने योग्य नहीं होता है!
ये कैसा बड़प्पन कि हमारे खेतों के अनाज जब इनके आँचल में जाता है तो वह छूने योग्य नहीं होता है!
औरत नदी होती है, जो दो किनारों के बीच अपने को नियंत्रित-संतुलित कर उबड़-खाबड़ रास्तों से निरंतर बहती चली जाती है।
बेनीपुरी ने ‘माटी की मूरतें’ जैसी जीवंत-कृति की रचना कर साहित्यिक-सांस्कृतिक चिंतन को साकार रूप देने का सफल प्रयास किया है।
झर झर झर रहे हैं फूल हरसिंगर के!रहते झरते रातभर वे। झर रहे हैं प्रात भर वे।झर रहे हैं फूल झर झर
कभी-कभी उलझा लेता है कोई काँटा। कभी कोई तार, कभी चलते-चलते कोई कील लेती उलझा!उलझ कर रह जाता है कोई वस्त्र। उलझा लेता है कभी-कभी कोई सन्नाटा!
यह चिड़ियों की आवाज है कही से आती हुई सुंदर है। यहीं यहीं यहीं कहीं। यह चिड़ियों की आवाज है देर से, दूर से भी न आती हुई– यह एक डर है!!