कुछ कोशिश तो हो
सब बदलेगा नहीं अचानक कुछ कोशिश तो होजान रही हूँ एक दिवस में नहीं हरा होगा यह बंजर लेकिन इक-इक कर ये बिरवे कुछ तो पाटेंगे कल अंतरबूँद-बूँद से घट भरने तक कुछ कोशिश तो हो
सब बदलेगा नहीं अचानक कुछ कोशिश तो होजान रही हूँ एक दिवस में नहीं हरा होगा यह बंजर लेकिन इक-इक कर ये बिरवे कुछ तो पाटेंगे कल अंतरबूँद-बूँद से घट भरने तक कुछ कोशिश तो हो
उलझो अगर लताओं-सा वृक्षों पर उलझो उलझो मत उड़ती पतंग के माझे जैसाविषधर लिपटाकर भी तन का चंदन रहना ही जीवन है
नभ की नीली आँखों को कजराने आए बादल आए, तपता मन हर्षाने आएकेवल बादल नहीं आस बनकर छाये हैं रचनाकार बड़े हैं, कुछ रचने आए हैं
तोतले थे बोल जो आकार अपना गढ़ रहे हैंसीख ए, बी, सी, ककहरा वाक्य गढ़ना चाहते अब माँ, बुआ, पापा सहित कुछ नया कहना चाहते अबडगमगाते थे क़दम जो दौड़ आगे बढ़ रहे हैं
कोने में बैठी है मुनियाइस नवराते में देख रही वह व्यवहारों में आया है अंतर छोटी बहना के हाथों में बँधा कलावा है छुटकी
दुनिया ने तब सच का लोहा मान लिया जब सच्चाई खुलकर सीना तान लियासूरज चाहे छुप जाए तो छुप जाए चिड़िया नभ तक उड़ जाने को ठान लिया