अज्ञेय की रचनाओं में सांस्कृतिक परिवेश

भारतीय संस्कृति के किन मूल्यों में उसका सामर्थ्य निहित है और कौन-सी प्रवृत्तियाँ उसे वह बल और गतिशीलता दे सकती है, जिसकी उस पश्चिमी संस्कृति का मुकाबला करने के लिए आवश्यकता होगी, यह प्रश्न भी हमारे सामने है।

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सूर्यबाला की रचनाशीलता

आरंभ से विदेश में पली-बढ़ी नन्हीं पोती के व्यवहार, बोली और सोच से हतप्रभ सूर्यबाला अचंभित हैं और थोड़ा दुःखी भी।

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बराबरी

तीनों को मालूम है कि पति ने चाय के लिए एक ही बार कहा था। शालू से रहा नहीं गया। रसोई से चाय लाते समय वह बोली, ‘सासू माँ, क्या आपकी सास ने भी आपके साथ ऐसा सलूक किया था

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कुंडली

वह ज्योतिषी के यहाँ पहुँचा तो भीड़ न पाकर हैरान भी हुआ और खुश भी। नमस्ते करके उसने अनमने भाव से दोनों बच्चों की कुंडली के कागज उनके सामने रख दिए और हाथ बाँधकर बैठ गया।

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