शिवदान सिंह बनाम राजकमल

संपादक और प्रकाशक का संबंध कैसा हो? इस प्रश्न के साथ अनेक प्रश्न उठते हैं–क्या प्रकाशक को यह अधिकार है कि वह जब चाहे संपादक को निकाल बाहर कर दे?

और जानेशिवदान सिंह बनाम राजकमल

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद

होश सम्हालने के बाद उर्दू-साहित्य में हमें दो ‘आज़ादों’ की प्रसिद्धि वातावरण में बरसती-सी दिखाई पड़ी। एक की आवाज उत्तर से बढ़ते-बढ़ते तमाम भारतवर्ष की साहित्यिक दुनिया में फैल गई थी और दूसरे की पूरब से आँधी की तरह चलकर सारे देश में गूँज रही थी। एक मुहम्मद हुसेन ‘आज़ाद’ की आवाज़ थी दूसरी अबुल कलाम ‘आज़ाद’ की। एक लाहौर से उठी थी, दूसरी कलकत्ते से।

और जानेमौलाना अबुल कलाम आज़ाद

पागल

यदि वह पागल नहीं होता तो अपने भोजन के लिए अवश्य ही जालसाजी करता, फरेब करता, चोरी-डकैती करता अथवा भीख ही माँगता...उसके पास भीख माँगने की झोली तक नहीं और वह अलमस्त बना रहता है। जरूर वह पागल है।

और जानेपागल

हमें यह कहना है!

पिछले दिनों, हिंदी-संसार ने दो जयंतियाँ मनाई–पं. माखनलाल जी चतुर्वेदी ‘भारतीय आत्मा’ की हीरक जयंती और युगकवि श्री सुमित्रानंदनपंत की स्वर्ण जयंती। चतुर्वेदी जी और पंत जी हिंदी-कविता के दो दौरों के ही नहीं, उसकी दो प्रवृतियों के भी प्रतीक हैं!

और जानेहमें यह कहना है!

निशानियाँ

यह मिर्जापुर का जिला जेल! जेल, जानवरों की श्रेणी में गिने जाने वाले, कसूर वाले कैदियों का दौलतखाना! भीतर रहने वालों की बात तो नहीं मालूम पर वे ही कैदी जब बाहर होते हैं तो मुस्कुराकर कानी ऊँगली इसके फाटक की ओर दिखा कर कहते हैं–ससुराल!

और जानेनिशानियाँ

आर्थर केस्लर (कलाकार या प्रचारक)

दुनिया भौगोलिक दृष्टि से छोटी हो गई है : उसका ओर-छोर कुछ घंटों में आदमी नाप सकता है। नहीं चाहने पर भी उसके हिस्से प्राण-तंतुओं से अनुस्यूत हो गए हैं : लंदन और न्यूयार्क में राजनीति करवट बदलती है तो दिल्ली में लोग आँखें मलने लगते हैं;

और जानेआर्थर केस्लर (कलाकार या प्रचारक)