मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
होश सम्हालने के बाद उर्दू-साहित्य में हमें दो ‘आज़ादों’ की प्रसिद्धि वातावरण में बरसती-सी दिखाई पड़ी। एक की आवाज उत्तर से बढ़ते-बढ़ते तमाम भारतवर्ष की साहित्यिक दुनिया में फैल गई थी और दूसरे की पूरब से आँधी की तरह चलकर सारे देश में गूँज रही थी। एक मुहम्मद हुसेन ‘आज़ाद’ की आवाज़ थी दूसरी अबुल कलाम ‘आज़ाद’ की। एक लाहौर से उठी थी, दूसरी कलकत्ते से।