कोरोना के बाद

बहुत दिनों के बाद बच्चों ने आँख मिचौली खेली है पार्क में बॉल उछली है। बहुत दिनों के बाद स्कूल की घंटी बजी है गरीब का चूल्हा हँसा है,

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जैसे कहीं कुछ नहीं हुआ

डूबते सूरज गिन रहा है जबकि वह अंतिम सूरज गिन चुका होगा साधारण आदमी के सूरज ऐसे ही बेमालूम डूबते हैं जैसे कहीं कुछ हुआ ही नहीं।

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कोरोना समय

कुछ नहीं हुआ देव! कुछ नहीं इस महाविनाशक आपात समय में जब हमें तुम्हारे आसरे की जरूरत है तुम कहीं दिखाई नहीं दे रहे न ही कहीं तुम्हारी लीला,

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रोना

स्वस्थ जीवन के लिए हँसना-रोना दोनों जरूरी है, परंतु पता नहीं क्यों महागुरुओं ने ‘रुदनयोग’ को योग-चर्चा में शामिल नहीं किया

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हिंदी बाल साहित्य परंपरा, प्रगति और प्रयोग

बाल साहित्य बच्चों में उन गुणों का बीजारोपण करता है जो भविष्य में चरित्रवान तथा नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हैं।

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‘पाटलिपुत्र’ निर्भीक पत्रकारिता की बानगी

काशी प्रसाद जायसवाल के संपादन में पटना से 1914 में शुरू हुआ ‘पाटलिपुत्र’ ने 7 वर्षों तक स्वतंत्रता की लौ जगाई।

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