Skip to content
नई धारा
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरणइस पृष्ठ पर आपको लेख, कविताएँ, कहानियाँ, आलोचक और यात्रा वृत्तांत मिलेंगे। एक लंबा स्थापित तथ्य है कि जब एक पाठक एक पृष्ठ के खाखे को देखेगा तो पठनीय सामग्री से विचलित हो जाएगा.
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Menu Close
  • गद्य धारा
  • काव्य धारा
  • कथा धारा
  • व्यंग्य धारा
  • हमारे बारे में
  • अन्य
    • संस्मरण/स्मरण
    • हम इनसे मिले थे
    • स्त्री विमर्श
    • दलित विमर्श
    • भारत-भारती
    • विश्व-भारती
    • हमें यह कहना है
    • आपने यह कहा है
Search for:

3

Home » 3 » Page 34
 होनहार लेखकों से

होनहार लेखकों से

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:June 1, 1953
  • Post category:गद्य धारा
  • Post comments:0 Comments

हिंदी ने कोई रवींद्र जैसा कवि अथवा शरत चंद्र जैसा उपन्यासकार पैदा नहीं किया

और जानेहोनहार लेखकों से
 बरसो, प्रतिपल बरसो!

बरसो, प्रतिपल बरसो!

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:June 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बरसो, प्रतिपल बरसो! कण-कण पर क्षण-क्षण तुम

और जानेबरसो, प्रतिपल बरसो!
 भगत सिंह : भगवती चरण

भगत सिंह : भगवती चरण

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:June 1, 1953
  • Post category:संस्मरण/स्मरण
  • Post comments:0 Comments

हमारे नवयुवक क्रांतिकारियों की कहानी संसार के किसी भी महान् देशभक्त से कम उज्ज्वल नहीं है।

और जानेभगत सिंह : भगवती चरण
 तू

तू

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:June 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

चुक गया रस ? झूठ; तू रीता नहीं है! मधु-मधुर है; विरस या तीता नहीं है!!

और जानेतू
 नील गगन में घन लहराए।

नील गगन में घन लहराए।

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:June 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

कवि को मेघ-मंद्र स्वर भाए, नील गगन में घन लहराए!

और जानेनील गगन में घन लहराए।
 संघर्ष

संघर्ष

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:June 1, 1953
  • Post category:गद्य धारा
  • Post comments:0 Comments

प्रस्तर में जीवन जागेगा।मेरी साधना न हार कभी भी मानेगी।

और जानेसंघर्ष
  • Go to the previous page
  • 1
  • …
  • 31
  • 32
  • 33
  • 34
  • 35
  • 36
  • 37
  • Go to the next page

Recent Posts

  • प्रेमचंद और दलित विमर्श
  • आपके जैसा तो शृंगार नहीं कर सकते
  • मुझे बचपन से कोई
  • शिशु
  • दूसरे शहर में

Recent Comments

  • उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से सम्मानित लेखकों के व्याख्यान - नई धारा on ‘स्त्री जितना दिखती है, सिर्फ उतनी भर ही नहीं होती’–सूर्यबाला
  • वातभक्षा - नई धारा on वातभक्षा
  • व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय से बातचीत - नई धारा on नई धारा संवाद : सूर्यबाला (कथा-लेखिका)
  • भारत और भारतीयता पर विचार | article on nationalism by shatrughan prasad on कभी मनुहार, कभी फटकार!

संपादक से संपर्क करें

  • +91 9334333509
  • editor@nayidhara.inOpens in your application
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
  • Opens in a new tab
Copyright - OceanWP Theme by OceanWP

WhatsApp us