जंगल में रात

चाँदी की चोंच थके पंखों के बीच दिए पड़कुलिया झील सो गई जंगल में रात हो गई शंखमुखी देह मोड़कर ठिगनी-सी छाँह के तले आवाजें बाँधते हुए चोर पाँव धुँधलके चले

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सावनी उजास

हाथों में फूल ले कपास के स्वर झूले सावनी उजास के पागल-सी चल पड़ी हवाएँ मंद कभी तेज झूल रही दूर तक दिशाएँ यादों की चाँदनी सहेज

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सांध्य गीत

टूट गई धूप की नसैनी तुलसी के तले दिया धर कर एक थकन सो–गई पसर कर दीपक की ज्योति लगी छैनी आँगन में धूप-गंध बोकर बिखरी चौपाइयाँ सँजोकर

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जीवन के संत्रास को व्यक्त करती लघुकथाएँ

रचनाकार कुशल, संवेदनप्रज्ञ एवं दृष्टिसंपन्न हो तो वह हाइकू में भी प्राण डाल सकता है, फिर लघुकथा की तो बात ही क्या है! लघुकथा समग्र जीवन का एकांत चित्रण-सौंदर्य है।

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संघर्ष की तस्वीर उकेरती कहानियाँ

इस संग्रह की कहानियों में एक नये संवेदनशील समाज को गढ़ने के बहुत से सूत्र समाहित हैं। यह संग्रह पठनीय होने के साथ-साथ ही संग्रहनीय भी बन पड़ा है।

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धनबाद से आगे कब निकलेगी

अपनी निद्रा मेघदूत को बेच दी थी। वे जितने बड़े महान कवि थे, उससे और अधिक महत्तर कवि हो सकते थे। बॉडेलेयर, रिल्के, पास्तरनाक ने नहीं होने दिया। वे हमारे वही ‘फॉलेन एंजेल’ हैं जिन्होंने अपनी उच्चता को कुछ ह्रास कर हमारे हाथों में यूरोप थमा दिया है।

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