प्रेमचंद का सूरा
प्राक्-गोदान युग के उपन्यासों में तथा गोदान में कोई विचारधारागत मौलिक प्रभेद नहीं है। दोनों अवस्थाओं में वे जनवादी हैं
प्राक्-गोदान युग के उपन्यासों में तथा गोदान में कोई विचारधारागत मौलिक प्रभेद नहीं है। दोनों अवस्थाओं में वे जनवादी हैं
फ्रांस के इस प्रसिद्ध और आदरणीय कलाकार का बचपन पेरिस की संकीर्ण गलियों में व्यतीत हुआ। जवानी कला की आराधना और जीविका कमाने में गुज़री।
“क्या कर रही हो बेटा ?” बुड्ढे ने खाँसते हुए कहा । उसकी आवाज़ में थरथराहट थी।
संपादक और प्रकाशक का संबंध कैसा हो? इस प्रश्न के साथ अनेक प्रश्न उठते हैं–क्या प्रकाशक को यह अधिकार है कि वह जब चाहे संपादक को निकाल बाहर कर दे?
होश सम्हालने के बाद उर्दू-साहित्य में हमें दो ‘आज़ादों’ की प्रसिद्धि वातावरण में बरसती-सी दिखाई पड़ी। एक की आवाज उत्तर से बढ़ते-बढ़ते तमाम भारतवर्ष की साहित्यिक दुनिया में फैल गई थी और दूसरे की पूरब से आँधी की तरह चलकर सारे देश में गूँज रही थी। एक मुहम्मद हुसेन ‘आज़ाद’ की आवाज़ थी दूसरी अबुल कलाम ‘आज़ाद’ की। एक लाहौर से उठी थी, दूसरी कलकत्ते से।
यदि वह पागल नहीं होता तो अपने भोजन के लिए अवश्य ही जालसाजी करता, फरेब करता, चोरी-डकैती करता अथवा भीख ही माँगता...उसके पास भीख माँगने की झोली तक नहीं और वह अलमस्त बना रहता है। जरूर वह पागल है।