सामने

आज भी सुबह आठ बजे से राहगीरों को ताकते हुए ग्यारह बजे चले थे। मजदूरी को तलाशती उसकी आँखों में मजबूरी पानी बनकर उभर आई थी।

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आज का जापानी साहित्य

जापान में इस साहित्यिक त्रिमूर्ति के बहुत से अनुयायी हुए, परंतु उनकी उम्र कम थी इसलिए ज्योंही युद्ध आया त्योंही उन्हें सेना में जाना पड़ा।

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