सामने
आज भी सुबह आठ बजे से राहगीरों को ताकते हुए ग्यारह बजे चले थे। मजदूरी को तलाशती उसकी आँखों में मजबूरी पानी बनकर उभर आई थी।
आज भी सुबह आठ बजे से राहगीरों को ताकते हुए ग्यारह बजे चले थे। मजदूरी को तलाशती उसकी आँखों में मजबूरी पानी बनकर उभर आई थी।
जापान में इस साहित्यिक त्रिमूर्ति के बहुत से अनुयायी हुए, परंतु उनकी उम्र कम थी इसलिए ज्योंही युद्ध आया त्योंही उन्हें सेना में जाना पड़ा।
हिंदी ने कोई रवींद्र जैसा कवि अथवा शरत चंद्र जैसा उपन्यासकार पैदा नहीं किया
हमारे नवयुवक क्रांतिकारियों की कहानी संसार के किसी भी महान् देशभक्त से कम उज्ज्वल नहीं है।