‘आलोचना’ के संबंध में

सुना है कि राजकमल प्रकाशन, दिल्ली की ओर से समाचार-पत्रों में घोषणा की गई है कि आगे से ‘आलोचना’ (त्रैमासिक) का संपादन, मेरे स्थान पर, चार लेखकों का एक संपादकमंडल प्रयाग से किया करेगा।

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मुझे याद है (चौथी कड़ी)

पिताजी के श्राद्ध में मेरे मामाजी बेनीपुर पधारे थे। उन्होंने मेरे बाबा से आग्रह किया कि मुझे ननिहाल जाने दें। बाबा ने इस आग्रह को मान लिए।

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संगिनी

गाड़ी से उतर कर भोला पैदल ही घर की ओर चल पड़ा। स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर तो उसका गाँव है, जहाँ चारों ओर लहलहाते अरहर के खेत हैं, पीली-पीली सरसों फैली है

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अपनी अपनी व्यवस्था

याद आ रहा है हमें आज वह दिन जब हमने मुनि की रेती के पड़ोस में स्वर्गाश्रम के किनारे केवल कोपीन पहने दो ऐसे अँग्रेजों के दर्शन पाए जो हिमालय की तराई में जाने कितने साल से योग साधना की ऊँचाइयों को, दुनिया से मुँह मोड़, हल करने में लवलीन थे।

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