अम्बेदकर और दलित हिंदी कविता
‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता और नए रचनात्मक सरोकार’ पर विचार करती हूँ तो सबसे पहले यह सवाल खड़ा होता है कि स्वातांत्र्योत्तर हिंदी कविता के नए रचनात्मक सरोकार क्या रहे हैं?…
‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता और नए रचनात्मक सरोकार’ पर विचार करती हूँ तो सबसे पहले यह सवाल खड़ा होता है कि स्वातांत्र्योत्तर हिंदी कविता के नए रचनात्मक सरोकार क्या रहे हैं?…
न्याय की बात नहीं करते वे और न ही समानता, भाईचारे तथा संवेदनाओं की मुनाफे कमाने की अंतहीन भूख से भरी है उनकी झोली बिल्कुल जगह
संग्रह में शामिल कहानी ‘सवाल दर सवाल’ इस देश के गाँवों में रोज होने वाली ऐसी घटनाओं को हमारे सामने बेपर्द करती है
सन् 1974 के बिहार आंदोलन में अनेक युवा जोड़ों ने सहजीवन की घोषणा की थी, आज प्रायः सभी जोड़े तनाव में जी रहे हैं।
फिर आया दूसरा सवाल या साहित्यकार बनाता साहित्य या इनसान बनाता साहित्य न कि साहित्य बनाता इनसान अगर साहित्य बनाता इनसान तो कुछ इनसान क्यों होते हैवान
राम के आदर्श पर चलना है तो प्रकृति विरोधी नहीं प्रकृति प्रेमी बनो राम के आदर्श पर चलना है तो मनुष्य प्रेमी ही नहीं पेड़-पौधे, पशु-पक्षी प्रेमी भी बनो राम के आदर्श पर चलना है