समकालीन गीत की पृष्ठभूमि और मेरा गीतकर्म
पश्चिमी आलोचना-पद्धति के अंधानुकरण के शिकार भारतीय काव्य-शास्त्र के मूल्यांकन के प्रतिमान भी हुए। भारतीय आलोचकों ने न तो अपनी सांस्कृतिक परंपरा पर विशेष ध्यान दिया, न उसका उत्खनन किया और न ही अपनी स्वतंत्र आलोचना-दृष्टि और इतिहास-दृष्टि ही विकसित करने की चेष्टा की।