ठहराव के विरुद्ध का सृजन-संसार
यह ‘तलवार की धार पे धावनो है’ जैसा ही होता है। अनिरुद्ध जी उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ते।
यह ‘तलवार की धार पे धावनो है’ जैसा ही होता है। अनिरुद्ध जी उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ते।
थीसिस की आत्मा एक है, पर लेखक, कागज, टाइप और बाइंडिंग बदलती रहती है। जिस तरह मनुष्य जीर्ण-शीर्ण वस्त्र त्यागकर नये वस्त्र धारण करता है,
महीप सिंह से मेरा परिचय 80 के दशक में हुआ और ‘संचेतना’ के लिए कुछ ज्वलंत सवालों पर लिखने की प्रक्रिया आरंभ हुई।
मजदूर इस्तेमाल करते हैं सीढ़ी सीढ़ी और बीड़ी मजदूर के ही काम आती है कभी किसी नाटक में मंच पर दिख जाती है कोई सीढ़ी अभिनेता जिससे कई तरह के काम लेते हैं बैठते हैं दौड़ते हैं खड़े हो जाते हैं उस पर लुकाछिपी का खेल खेलते हैं
वास्तुकार हँसा–‘जिंदगी में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए होता है, बस लौट पड़ने को एक रास्ता और गिर पड़ने को घर के भीतर खुलता कोई दरवाजा!’
इस ग्रंथ पर इस्लाम और कुरआन की आयतों का सर्वत्र प्रभाव ही नहीं उनके भावों को उद्धाटित किया है जायसी ने।