नई धारा संवाद : कथाकार चित्रा मुदगल

ये कैसा बड़प्पन कि हमारे खेतों के अनाज जब इनके आँचल में जाता है तो वह छूने योग्य नहीं होता है!

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नदी होती औरत

औरत नदी होती है, जो दो किनारों के बीच अपने को नियंत्रित-संतुलित कर उबड़-खाबड़ रास्तों से निरंतर बहती चली जाती है।

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बेनीपुरी और उनकी ‘माटी की मूरतें’

बेनीपुरी ने ‘माटी की मूरतें’ जैसी जीवंत-कृति की रचना कर साहित्यिक-सांस्कृतिक चिंतन को साकार रूप देने का सफल प्रयास किया है।

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कभी कभी

कभी-कभी उलझा लेता है कोई काँटा। कभी कोई तार, कभी चलते-चलते कोई कील लेती उलझा!उलझ कर रह जाता है कोई वस्त्र। उलझा लेता है कभी-कभी कोई सन्नाटा!

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चिड़ियो की आवाज

यह चिड़ियों की आवाज है कही से आती हुई सुंदर है। यहीं यहीं यहीं कहीं। यह चिड़ियों की आवाज है देर से, दूर से भी न आती हुई– यह एक डर है!!

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