सुबह

फूल की सुगंध में सुबह जल की लहरियों पर सुबह पंछी के परों पर सुबह धरों पर सुबह छतों, छज्जों पर सुबह उपवन में सुबह चितवन में सुबह

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विष्णुचन्द्र शर्मा आदमी के सपनों के कवि

विष्णुचन्द्र शर्मा की कविता ने उनको ताकीद की है कि तुम्हारे जैसे कवि का जीवन ‘सपनों का आख्यान भर नहीं’ है।

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दुम

‘आज देखता हूँ।’–आत्मविश्वास से मैं तन गया था! इसका आभास होते ही मेरी गर्दन पुनः सामान्य हो गई। ‘मामा जी, यदि एक बार अंदर कर देंगे तो जल्दी बेल भी नहीं होने देंगे एमएलए साहब, उसका तो जिला जज के साथ अच्छा उठना-बैठना होता है।

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आश्वासन

हीं, मैं नहीं दे सकता कोई आश्वासन साथ निभाने का प्यार से जीवन सँवारने का तुम्हारी हथेली पर मेहँदी का रंग चढ़ाने का, बाँहों में कसने का

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