अफ़सर का दु:ख
कुर्सी जब विरामावस्था में आ गई तो यह याद आया कि स्टाफ हो या नहीं हो, मीटिंग तो करानी पड़ेगी। चाबी लेकर आलमीरा खोला।
कुर्सी जब विरामावस्था में आ गई तो यह याद आया कि स्टाफ हो या नहीं हो, मीटिंग तो करानी पड़ेगी। चाबी लेकर आलमीरा खोला।
सागर फोन पर बात कर लेता, लेकिन प्रत्यक्ष आने की बात पहले की तरह नहीं थी। जीवन में नये आयाम जुड़ गए थे।
नवगीत की भाषा में किसी दृश्य का सौंदर्य जब शब्द में अभिव्यक्त होता है तब स्थूल हो जाता है और स्पर्श में अनुभूति का कारण;
उल्लेखनीय है कि शिलानाथ विश्वास के बेटे फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ के पहले साहित्यिक गुरु अनूपलाल मंडल ही थे।
एनसीसी के दिनों में खूब कमांड दिया करती थी। शायद उसी ने दिया होगा यह थ्रो। बहरहाल, अच्छा लगा।
कल्पना यथार्थ से भी अधिक कठोर होती हैं इसे कोमल उँगलियों से भी स्पर्श मत करो शरमा जाती है यह छुईमुई की तरह