चीजों की भीड़

चीजें हैं, पर रिश्तों की गरमाहट गायब है  घर लगता घर नहीं,  बना घर आज अजायब है  गर्म हवा कहती है कथा  ऊब की, खीजों कीविश्वग्राम के नये रंग ने रंग दिखाए हैं 

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शुक्रिया कहना चाहता था

मैं कितना स्पंदित था कि तुम्हें छोड़कर  आसमान की तरफ़ ताकने लगा  मुझे कितनों को शुक्रिया कहना था  सब भूल गया!

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ताकतवर लोगों के घर

ये घर अब लंबे अंतरालों खुलते हैं कुछ मजदूर वहाँ जमी धूल हटाते दिखते हैं  एक पंडित आता है  कुछ लोग जमा होते हैं  रामनामी धुन दो एक दिन  चलती रहती है  रात को रोशनी होती है

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जहाँ भी रहूँ

पुरखों के शरीर का नमक गिरा है यहाँ मैं यहीं पैदा हुआ और पिता की उँगली  पकड़कर दुनिया के रास्तों पर आया माँ लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाती थी लीपे हुए आँगन में बैठकर  सब साथ खाते थे

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चला गया आदमी

एक बार सब्जियों की हाट में उसने अच्छे  प्याज छाँटने में मेरी मदद की थी  इससे ज्यादा का कोई वास्ता  नहीं रहा मेरा उससे जब तीन साल पहले वह अचानक 

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चाँद चाँद ही रहेगा

गरीब बच्चों का बना रहेगा चंदा मामा और वक्त जरूरत सोने की कटोरी में दूध-भात लेकर हाज़िर होता रहेगाउसके होने से चार दिन की ही सही आती रहेंगी चाँदनी रातेंचाँदनी में नहाती रहेगी धरती चाँदनी हमारे सपनों में उजास भरती रहेगी

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