नकबेसर कागा ले भागा

हे मेरे प्रिय! मेरे नाक का सिंगार है ‘नकबेसर’ नाक की शोभा चली गई तो क्या होगा कैसे मुँह दिखाऊँगी छुपाऊँगी भी तो कैसे जल्दी करो प्रिय! कौवे से नकबेसर ले लाओ

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मुख्तसर सा इतिहास

पंद्रह अगस्त सन् सैंतालिस को भारत को आज़ादी मिली लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य बना और अमृत महोत्सव मना रहा है यानी, आज़ादी के 75 वर्ष पूरे करके शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है

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कालिदास सच-सच बतलाना

‘आषाढ़ का एक दिन’ मोहन राकेश का प्रसिद्ध नाटक है–नाटक मेघदूत की प्रथम पंक्ति आषाढ़स्य प्रथम दिवसे से प्रेरित है।

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इतिहास बदलने वाले हैं

तलवार हमारी है निर्भय आज़ाद कलम हम लड़ते आए ज़ोर-जुल्म से जनम-जनम हम निर्बल का संन्यास बदलने वाले हैं हम तो कवि हैं, इतिहास बदलने वाले हैं

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पाखंड की इमारत

माथे पर पाग बाँधे एक बाँका सहसवार दरवाजे पर आकर खड़ा नहीं हो सकता और न ही फूलों का हार पहने पालकी जैसी दुल्हन उस समय की प्रतीक्षा करनी होगी

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सकल संसार है अम्मा

एक रोचक घटना याद आ रही है। मैं तब दस साल का था। पिता जी किसी काम से बाहर गए हुए थे। राशन लाना जरूरी था।

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