कितनी चाह कितने रंग

सो चलते रहे पाने-खोने के खेल में हारते और हाथ मलते रहे अटके हुए भटके हुए जहाँ पहुँचे, जहाँ ठहरे वहाँ अपने हिस्से बस इक आह थी जिसे बार-बार बनाना चाहा

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सच

यह सच है कि सच के बहुत सारे पहलू होते हैं लेकिन इतना उलझा हुआ भी नहीं होता सच जितना उसे बना दिया जाता है वह तो निरीह, सीधा-सादा अपनी राह चलने वाला होता है।

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जो सोचा वो कब हुआ

यामिनी अपनी बात बोलने के बाद बिल्कुल खामोश हो गई थी। घर से निकलते वक्त जब उसने बेटे को गले लगाया, उसे छुटपन वाला चिराग बहुत याद आया; जिसे माँ चाहिए होती थी।

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प्रश्न के जवाब

रौशनदान में रह रही गौरैया ने घोंसले के तिनकों में छोड़ा है एक प्रश्न अँधियारी रात में शहर के भय भरे एकांत में छिपी लड़कियों ने माँगा है जवाब अपने कुचले गए वजूद का पानी में भीगती, जाड़े में ठिठुरती

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माँ ने कहा था

माँ ने कहा था बेटी, घर-परिवार में सबके खाने के बाद ही खाना बड़ों की किसी बात का जवाब मत देना ससुराल में नौकर तक को आप कहकर बुलाना माँ ने कहा था बेटी, कुल की लाज रखना पति की लंबी आयु के लिए तीज-त्योहार में व्रत रखना

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