मुझे याद है (पाँचवी कड़ी)

उस दिन मेरी ममेरी बहन की बिदागरी थी। आँगन में, दरवाज़े पर धूम मची हुई थी। जिनके घर में बेटियाँ ही बेटियाँ हों, उनके घर में बेटियों के आदर-सम्मान का क्या कहना ?

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आम

संस्कृत के एक कवि ने आमवृक्ष को संबोधित कर के कहा है कि हे रसाल ! न तो कोंहड़े के फल के समान तुम्हारे फल होते हैं, न तो बड़-पीपल की तरह तुम्हारी ऊँचाई होती है

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शिवपूजन जी को सरकारी अनुदान

हमें यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि आचार्य शिवपूजन सहाय जी को बिहार सरकार ने उनकी चिकित्सा के लिए पाँच हज़ार रुपए का अनुदान दिया है

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रवि बाबू की कला का लोकवादी स्वरूप

हे कवि, जीवन-संध्या समीप है, तुम्हारे बाल पक गए; क्या तुम्हें अपने एकांत चिंतन में पारलौकिक संदेश सुनाई पड़ता है?

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