रोना
स्वस्थ जीवन के लिए हँसना-रोना दोनों जरूरी है, परंतु पता नहीं क्यों महागुरुओं ने ‘रुदनयोग’ को योग-चर्चा में शामिल नहीं किया
स्वस्थ जीवन के लिए हँसना-रोना दोनों जरूरी है, परंतु पता नहीं क्यों महागुरुओं ने ‘रुदनयोग’ को योग-चर्चा में शामिल नहीं किया
बाल साहित्य बच्चों में उन गुणों का बीजारोपण करता है जो भविष्य में चरित्रवान तथा नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हैं।
काशी प्रसाद जायसवाल के संपादन में पटना से 1914 में शुरू हुआ ‘पाटलिपुत्र’ ने 7 वर्षों तक स्वतंत्रता की लौ जगाई।
मैं-कृष्णदेव हक्के-बक्के थे, पर कहीं गहरे संतोष में भी थे। ‘अरुन्धती, आज के शब्दों में ‘निर्भया’ होने से बच गई!’
वास्तव में, हिंदी-उर्दू विवाद घोर रूप से कूपमंडूक प्रकार के मस्तिष्क की देन है’ अवैज्ञानिक, अनप्रैक्टिकल केवल लड़ाई कराने वाली है।
कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है जो बीत गई सो बात गई।