यथार्थ
मैं पी रही थी चाय कुर्सी पर बैठी और वो बग़ल में ज़मीन पर पूरी दुनिया पसारे मैं लिखा-पढ़ी में व्यस्त तो उसका मन अटका हुआ था पाप-पुण्य में अगले सातों जनम को सुखमय
मैं पी रही थी चाय कुर्सी पर बैठी और वो बग़ल में ज़मीन पर पूरी दुनिया पसारे मैं लिखा-पढ़ी में व्यस्त तो उसका मन अटका हुआ था पाप-पुण्य में अगले सातों जनम को सुखमय
बह रहे हैं शव काल के प्रवाह में इतने लोग मर रहे हैं कि नमन श्रद्धांजलि दुआ सबके सच्चे मायने खो गए लगता है अपने आँसू और दूसरों के आँसुओं को ओढ़कर बैठी-बैठी मैं नमक का ढूह बन गई हूँ
सिताब दियारा से कटिहार के पूर्वी छोर तक गंगा की धारा बदलने से जहाँ-तहाँ कुछ जमीन छूट गई है, वैसे क्षेत्र को दियारा कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को प्रबोधते हुए कहा था कि ‘योग: कर्मसु कौशलम् अर्थात कर्म की कुशलता का नाम ही योग है। कर्म ही धर्म है। मैंने अपने चार दिनों के प्रवास में देखा कि वहाँ के प्रत्येक नागरिक ने कर्म की कुशलता को अपने जीवन में अपना लिया है।
यहाँ नीरज ने अपराध, प्यार सब संस्कृत निष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया है और दूसरी ओर आदमी शब्द का उपयोग है, मनुष्य, का नहीं। कविता की संप्रेषणीयता का सबसे सहज स्वरूप आधुनिक हिंदी कविता में नीरज के यहाँ मिलता है।
सूरज ने किरण-माल डाली कानों तक फैल गयी लाली क्षितिजों का उड़ गया अँधेरा फैल गया सिंदूरी घेरा गीतों ने पालकी उठाली जाग गईं दूर तक दिशाएँ बाहों-सी खुल गईं हवाएँ