असम के प्रकृति-बंधु ‘मागध’

पुनश्च मेरे द्वारा संपादित पुस्तक–‘महिला सशक्तिकरण : कल, आज और कल’ में मागध जी ने मुझे दो आलेख दिए। पहला आलेख–‘नारी का सबलीकरण और शिक्षा’ तथा दूसरा आलेख–‘महिला के पर्यायवाची’ शब्द शामिल है।

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सपने में गाँधी जी

अपने जर्जर शरीर को सँभाल नहीं सके गाँधी जी वहीं गिर पड़े हैं गाँधी जी, बा उठा रही हैं उनको, लेकिन गाँधी जी, उठ नहीं रहे हैं!

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गंगा सागर

हंसिया, दरांती खंभे के एक सिरे पर हाथ दूसरे पर बाँधकर अपना पैर हमने बना लिया है सेतु अपनी ही देह पर चढ़कर हम पार कर रहे हैं गंगा सागर!

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विदा होने से पहले

हमें अपने से ही जतन करना था, अक्षत और दूब अपने से ही भरना था खोइंछा, सँभालना था अँचरा खुद ही रोना और खुद को ही चुप कराना था और इसी तरह विदा होना था

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रेणु की सामो आमाँ

रेणु के व्यक्तित्व का निर्माण इसी सानो आमाँ के अंचल में हुआ। कोइराला-निवास में रहते हुए और आदर्श विद्यालय में पढ़ते हुए

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बाँसों का प्रदेश

बाँसों में उत्पन्न सरसराहट से जाग उठता मधुरमय नवगीत, सीप में छिपे जीव झिंगुर संग करते नृत्य, पूर्वोत्तर का है परिवेश जहाँ बसा है बाँसों का प्रदेश।

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