मेरी पर्णकुटी
अंजुरी में समेटना समंदर और उगाना बालू पर कमल गिनती तारों की रात भर देखना उल्का पिंड सहम कर
अंजुरी में समेटना समंदर और उगाना बालू पर कमल गिनती तारों की रात भर देखना उल्का पिंड सहम कर
कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो अपनी माँ को खा जाते हैं माते! तेरे बहुत से सपूत इन दिनों कर रहे हैं तेरे नाम का कीर्तन। भारत माता अपनी खैर मना!
और अहंकार में डूबे वे कभी मुरझाते नहीं थे फूलों के पास वक्त ही कहाँ था
ड्राइंग-रूम में सजाकर रखा गया बोनसाय बरगद का पेड़ नहीं होता पूज्य वट वृक्ष की एक बड़ी डाल की तरह जो गड़वाती है
कुछ कहानियों के सही शीर्षक बदल कर बेतरतीब शीर्षक देने के लिए एक बड़े संपादक से बातचीत में उलझे हुए बहुत दिन हो गए
उन्नीसवीं शताब्दी यदि भारतीय इतिहास, राजनीति, संस्कृति, समाज, धर्म, शिक्षा और भाषा आदि के क्षेत्रों में आमूल-चूल परिवर्तनों की शताब्दी है,