रमणिका गुप्ता से अंतरंग बातचीत
काव्य मंच और दलित साहित्य की बातें आईं तो इन्होंने टिप्पणी की–‘आज काव्य मंच दिशाहीन हो अपने उत्तरदायित्वबोध से अलग है।
काव्य मंच और दलित साहित्य की बातें आईं तो इन्होंने टिप्पणी की–‘आज काव्य मंच दिशाहीन हो अपने उत्तरदायित्वबोध से अलग है।
बला की धूप में क्या-क्या किसान देखते हैं कभी जमीन कभी आसमान देखते हैंकहाँ गए वो सिपाही जो हमसे कहते थे हम अपने गाँव में हिंदोस्तान देखते हैंसड़क का दर्द हवाई जहाज क्या जाने
मैं ‘अशोक’ हूँ मैं ‘मिजाज’ भी मैं इकाई हूँ, मैं समाज भीकहीं सख्त हूँ कहीं नर्म भी मैं उसूल भी हूँ, रिवाज भीमैं ही आप अपना लिबास हूँ मैं बटन भी हूँ, मैं ही काज भी
नींद कानून के रखवालों की गहरी देखी दोपहर बाद तो मुनसिफ ने कचहरी देखीआज भी देखने मिलता है गुलामी का असर कोट पहने हुए गर्मी की दुपहरी देखी
शाम का अक्स दरो बाम पे उतरा होगा हुस्न चेहरे का तेरा और भी निखरा होगावो मेरा साथ निभाएगा भला यूँ कब तक जिसकी आँखों में किसी और का चेहरा होगादेखकर सूखे दरख़्तों को मुझे लगता है
पूरे सिंगापुर में ये शृंखलाएँ फैली पड़ी हैं। एक स्टार बक्स आउटलेट पर तो बाकायदा लाइब्रेरी है। अखबार और किताबें। इंटरनेट की सुविधा।