‘अक्करमाशी’ प्रसंग अर्थात हणमंता राव लिंबाले
दलित साहित्य में द्विज जारकर्म की व्यवस्था के किसी भी तरह के लेखन के लिए कोई स्थान नहीं।
दलित साहित्य में द्विज जारकर्म की व्यवस्था के किसी भी तरह के लेखन के लिए कोई स्थान नहीं।
एकाकी अम्मा को भरी-पूरी तेज रफ्तार दुनिया नहीं सुहाती, तो दुनियादारी में आपादमस्तक डूबी जानकी को अम्मा का बड़बोलापन बेतरह चुभता है.
अवधेश ने अपनी आँखें पोंछीं, अपने आपको स्थिर किया और प्रवीर की तरफ मुँह घुमाया। प्रवीर का स्थिर और पथराया चेहरा देखकर वह सहम गया। उसने प्रवीर को टोका,
रेहाना अपनी अम्मी जान को बगैर देखे ही यह महसूस कर रही थी कि परछाइयाँ बोल सकती हैं। उसे लगा कि बड़ी बी ने ऐनक उतारी, उसे हथेलियों से मसला
अपने ही मुहल्ले के लड़के वहाँ काम कर रहे हैं। मुझसे कह रहे थे, भइया आप मेरे साथ चलो। आप बस बैठे रहना।
अपनी बेगम की बेवफाई का बादशाह शहरयार के दिल पर गहरा असर पड़ा और उनका औरत जात पर से ही भरोसा उठ गया।