सामने
आज भी सुबह आठ बजे से राहगीरों को ताकते हुए ग्यारह बजे चले थे। मजदूरी को तलाशती उसकी आँखों में मजबूरी पानी बनकर उभर आई थी।
आज भी सुबह आठ बजे से राहगीरों को ताकते हुए ग्यारह बजे चले थे। मजदूरी को तलाशती उसकी आँखों में मजबूरी पानी बनकर उभर आई थी।
अनीला को जब से उर्मि का पत्र मिला तब से उसके अंदर का अंतर्दाह निरंतर सुलगता रहा है। जब वह समझ रही थी कि एक जीवन का अंत हो चुका तभी उसमें सोई पड़ी प्राणों की चिनगारी सुलगने लगी।
अपनी पत्नी की मृत्यु के तीसरे दिन महँगू फिर मुझसे मिला। मेरे कुछ पूछने के पहले ही वह बोला– “सरकार, रात वह आई थी।”
उस दिन मेरी ममेरी बहन की बिदागरी थी। आँगन में, दरवाज़े पर धूम मची हुई थी। जिनके घर में बेटियाँ ही बेटियाँ हों, उनके घर में बेटियों के आदर-सम्मान का क्या कहना ?
ओ पाषाण के पुजारी! तुम्हारा देवता पत्थर है। चिर-काल से तुम पत्थर को देवता मानकर