दातादीन
तब मैं बी.ए. में पढ़ता था। प्रयाग विश्वविद्यालय का वह विशाल भवन और उसी के सामने के छात्रावास और उसकी बत्तीस नंबर की कोठरी, मुझे आज तक याद है। उसी में मैं रहा करता था।
तब मैं बी.ए. में पढ़ता था। प्रयाग विश्वविद्यालय का वह विशाल भवन और उसी के सामने के छात्रावास और उसकी बत्तीस नंबर की कोठरी, मुझे आज तक याद है। उसी में मैं रहा करता था।
एक दिन वह था कि हर गोरा, सम्राट् का जोड़ा बन कर मूँछों पर ताव दिए इठलाता रहा हमारे यहाँ–‘सम्राट भाविया पूजि सबारे’।
‘शिव’ यानी अच्छाई। अच्छाई एकबार जम करके, जड़ीभूत होकर एक खंभा बनी।
उठो साथियो ! निशीथ का अब हो चला विनाश और देखो व्योम में– रजनी कालिमा का अवशेष ! अब देख इधर– प्राची में रवि शोणित-सी-लाली लिए राष्ट्र के सोये हुए कुम्हलाए, शोषित-पीड़ित मानव को जगाने के लिए इस ओर संकेत करता आ रहा।
गोर्की की गिरफ्तारी और जेल में बंद किए जाने के कारण चारों तरफ क्रोधाग्नि भड़क उठी। तमाम रूस ने उसके छुटकारे के लिए आग्रह पूर्वक अनुरोध किया। टालस्टाय भी इस बीमार लेखक के लिए मैदान में उतर आया।सरकार को जनता की इच्छा के आगे मजबूर होकर झुकना ही पड़ा। गोर्की जेल से मुक्त कर दिया गया किंतु उसके बदले में घर में ही नजरबंद हो गया। यहाँ तक कि उसके रसोई-घर और खास बैठक तक में पुलिस तैनात कर दी गई। एक पुलिस का आदमी तो हमेशा ही उसके अध्ययन-कक्ष में घुस आता और उससे वाद-विवाद करने की चेष्टा भी करता।
‘मीर’ साहब ने हिंदी-सेवा का अखंड व्रत लेकर जो घोर पाप किया था, उसका प्रायश्चित उनकी अनाथा वृद्ध पत्नी कर रही हैं।