रुआँसे चेहरे वाले लोग
वे चाहते हैं हमारी चुप्पी, हमारे कत्ल पर... उन्हें पसंद नहीं मरते हुए लोगों के शोर वे मुस्कान देखना चाहते हैं हमारे चेहरे पर, जब चले छुरी गले पर और हमारी साँस-नली कट जाए, एक फट की
वे चाहते हैं हमारी चुप्पी, हमारे कत्ल पर... उन्हें पसंद नहीं मरते हुए लोगों के शोर वे मुस्कान देखना चाहते हैं हमारे चेहरे पर, जब चले छुरी गले पर और हमारी साँस-नली कट जाए, एक फट की
कविता सीधे रास्ते नहीं चलती…. कविता राजमार्गों को छोड़, राहमापी करती है गलियों, पगडंडियों धूलभरी बस्तियों की। कविता पसीने की गंध में मिलाती है गर्म रोटी की महक।
कविता पसीने की गंध में मिलाती है गर्म रोटी की महक। कविता चूल्हे पर उठती भाप से मापती है भूख का तापमान। कविता घृणा की परतों को उधेड़ प्रेम पर अपनी मुहर लगाती है
वापसी की यात्रा उम्मीदों से भरी होती है प्रकाश, प्रेम और ‘थकान से मुक्ति’ के जश्न की कामना लिए वापसी की यात्रा हमेशा छोटी होती है गमन की यात्रा से।
‘मैं नहीं जानता, बहुत लोग रोज आते हैं–उनका परिचय तो लेता नहीं।’ वह लेडी यहाँ नई-नई आई थी और डिप्टी कलक्टर के पोस्ट पर थी।
अपने इर्द-गिर्द से आ रहे विमर्श को जगरनिया के माई बाबू सुन रहे हैं। बात एक होती है लेकिन दिमाग अपने अनुसार आशय ढूँढ़ता है।