समकालीन गीत की पृष्ठभूमि और मेरा गीतकर्म

पश्चिमी आलोचना-पद्धति के अंधानुकरण के शिकार भारतीय काव्य-शास्त्र के मूल्यांकन के प्रतिमान भी हुए। भारतीय आलोचकों ने न तो अपनी सांस्कृतिक परंपरा पर विशेष ध्यान दिया, न उसका उत्खनन किया और न ही अपनी स्वतंत्र आलोचना-दृष्टि और इतिहास-दृष्टि ही विकसित करने की चेष्टा की।

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आप आए हैं

आप आए हैं फिर, शुक्रिया आपका गाँव भाए हैं फिर, शुक्रिया आपका बदबुओं से भरे ये गली-रास्ते महमहाये हैं फिर, शुक्रिया आपका ख़ुशनुमा वायदों की गठरियाँ कई ढो के लाए हैं फिर, शुक्रिया आपका

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पानी बरसा धुआँधार

पानी बरसा धुआँधार फिर बादल आए रे धन्य धरा का हुआ प्यार, फिर बादल आए रेधूल चिड़चिड़ी धुली, नहा पत्तियाँ लगीं हँसने प्रकृति लगी करने सिंगार, फिर बादल आए रे

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रहने को ख़ुशी आई थी

(पाँच) रहने को ख़ुशी आई थी मेहमान हो गई दो दिन ही सही मुझ पे मेहरबान हो गई भगवान तो हँसते हैं खुले खेत में, दिल में मंदिर में बंद मूर्ति लो भगवान हो गई

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घबराइए न, आइए यह आपका घर है

घबराइए न, आइए यह आपका घर है मेरे समीप आने में किस बात का डर है मिल करके जिससे पाल लिया भय है आपने उसका मनुष्य लेखनी भर में है, ख़बर है

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सख्त रास्ते हैं मगर चल रही है

सख्त रास्ते हैं मगर चल रही है ज़िंदगी बार-बार गिर रही, सँभल रही है ज़िंदगी हँस रही है फूल अगर हँस रहे हैं राह में कंटकों के बीच भी मचल रही है ज़िंदगी

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