तेज़तर होती लौ
जिसकी छुरी की तेज़ धार बिना बटखरे के भी काटती है नपातुला माँस एक दीप जो बुझने के अरसे बाद होता है प्रज्ज्वलित सदियों बाद तेज़तर होती जाती है उसकी लौ!!
जिसकी छुरी की तेज़ धार बिना बटखरे के भी काटती है नपातुला माँस एक दीप जो बुझने के अरसे बाद होता है प्रज्ज्वलित सदियों बाद तेज़तर होती जाती है उसकी लौ!!
किसी के जनेऊ में बँधी है चाबी किसी किसी के पल्लू में बँधी है एक नहीं, दो नहीं, कई-कई चाबियाँ मैं कहाँ रखूँ तुम्हारी दी हुई एक नन्ही चाबी?
वे कविताएँ जो किसी संग्रह में नहीं हैं वे सब तुम्हारे पास हैं। वे सब रहेंगी तुम्हारे पास मेरे पास भी नहीं किसी के पास नहीं।
दर्द पिछले दरवाजे से आता है और अगले दरवाजे़ से निकल जाता है लेकिन कभी-कभी वह रुक जाता है सुबह जाऊँगा, नहीं शाम जाऊँगा कहता आज नहीं, कल जाऊँगा।
चारों तरफ अफरा-तफरी मची है। किसी की साँसें फूल रही हैं, कोई बुखार तो कोई दर्द से चीख रहा है। कहीं-कहीं विलाप फूट पड़े हैं।
दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे दूध-दूध उफ् कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ से किस घर से दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अंबर से