पहाड़
न्याय की बात नहीं करते वे और न ही समानता, भाईचारे तथा संवेदनाओं की मुनाफे कमाने की अंतहीन भूख से भरी है उनकी झोली बिल्कुल जगह
न्याय की बात नहीं करते वे और न ही समानता, भाईचारे तथा संवेदनाओं की मुनाफे कमाने की अंतहीन भूख से भरी है उनकी झोली बिल्कुल जगह
संग्रह में शामिल कहानी ‘सवाल दर सवाल’ इस देश के गाँवों में रोज होने वाली ऐसी घटनाओं को हमारे सामने बेपर्द करती है
सन् 1974 के बिहार आंदोलन में अनेक युवा जोड़ों ने सहजीवन की घोषणा की थी, आज प्रायः सभी जोड़े तनाव में जी रहे हैं।
फिर आया दूसरा सवाल या साहित्यकार बनाता साहित्य या इनसान बनाता साहित्य न कि साहित्य बनाता इनसान अगर साहित्य बनाता इनसान तो कुछ इनसान क्यों होते हैवान
राम के आदर्श पर चलना है तो प्रकृति विरोधी नहीं प्रकृति प्रेमी बनो राम के आदर्श पर चलना है तो मनुष्य प्रेमी ही नहीं पेड़-पौधे, पशु-पक्षी प्रेमी भी बनो राम के आदर्श पर चलना है
अपने कुंभनदास को ही देख लो हिंदी संस्थानों से कहीं ज्यादा अपनी टुटही पनही को तवज्जो देते हुए मिल जाएँगेतो प्यारे, अभी नोबेल को छोड़ो मुझे जल्दी है अपनी पनही ठीक करानी है