ढाई आखर प्रेम का…

‘वक्त ने बालों में चाँदी भर दी इघर-उधर जाने की आदत कम कर दी कभी अँधेरा, कभी सवेरा है जीवन आज और कल के बीच का फेरा है जीवन।

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आत्ममुग्धता से परे

तुम मौन में तराशती हो शब्दों के लौह औजार भावावेगों के सिरों को थाम कल्पना और यथार्थ के संतुलन में लिखती हो न जाने कितनी कहानियाँ कहानियाँ तुम्हारे लिए जीवन सत्य के अलावा

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 काम कला की नगरी : खजुराहो
kaam kala kee nagaree : Khajuraho

काम कला की नगरी : खजुराहो

गुप्तकालीन और चंदेल कालीन मूर्तिशिल्प के अनुपम आगार गढ़ने के लिए शिल्पियों ने पाषाण को मोम की तरह तराशा है।

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कैमूर में पुरातात्विक स्थलों की भरमार

‘नहीं हम मंडी नहीं जाएँगे खलिहान से उठते हुए कहते हैं दाने जाएँगे तो फिर लौटकर नहीं आएँगे जाते-जाते कहते जाते हैं दाने।’

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मैं बृहन्नला

‘जनम लिए रघुरइया, अवध म बाजे बधइया महलन मंगल चौक पूर गए जगर-मगर सब ठंइया अवध म... राजा दशरथ कय बात न पूछो मोहरे रहे लुटइया अवध म...।’

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