ढाई आखर प्रेम का…
‘वक्त ने बालों में चाँदी भर दी इघर-उधर जाने की आदत कम कर दी कभी अँधेरा, कभी सवेरा है जीवन आज और कल के बीच का फेरा है जीवन।
‘वक्त ने बालों में चाँदी भर दी इघर-उधर जाने की आदत कम कर दी कभी अँधेरा, कभी सवेरा है जीवन आज और कल के बीच का फेरा है जीवन।
तुम मौन में तराशती हो शब्दों के लौह औजार भावावेगों के सिरों को थाम कल्पना और यथार्थ के संतुलन में लिखती हो न जाने कितनी कहानियाँ कहानियाँ तुम्हारे लिए जीवन सत्य के अलावा
गुप्तकालीन और चंदेल कालीन मूर्तिशिल्प के अनुपम आगार गढ़ने के लिए शिल्पियों ने पाषाण को मोम की तरह तराशा है।
‘नहीं हम मंडी नहीं जाएँगे खलिहान से उठते हुए कहते हैं दाने जाएँगे तो फिर लौटकर नहीं आएँगे जाते-जाते कहते जाते हैं दाने।’
‘जनम लिए रघुरइया, अवध म बाजे बधइया महलन मंगल चौक पूर गए जगर-मगर सब ठंइया अवध म... राजा दशरथ कय बात न पूछो मोहरे रहे लुटइया अवध म...।’