हर दिन युद्ध-क्षेत्रे

जो लड़े और युद्ध-क्षेत्रे मरे सचमुच वे ही वीर कहलाए मैं, अपने सिर ऊपर तीर रखता हूँ और सीने में अपार हौसला भरता हूँ मैं, हर दिन एक युद्ध लड़ता हूँ और हर दिन एक नए जीवन के लिए

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वह जो एक शब्द है

वह जो एक वाक्य है मैं उसे एक अच्छे वक्तव्य में हूबहू बदल देना चाहता हूँ  मेरे पास वाक्य नहीं है।वह जो एक वक्तव्य है मैं उसे एक अच्छी भाषा में हूबहू बदल देना चाहता हूँ 

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आवाज़

जंगल में मोर नाचा, किसने देखा? कभी-कभी, गंजे को भी खाज़ होती है और सिर्फ़ नगाड़े की ही नहीं, तूती की भी आवाज़ होती है लो, देख लो, वहाँ, उधर सुर्ख-स्वर्णिम सुबह हो रही है और एक बार फिर

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अहं से वयं की यात्रा

अपना होना तब बनती है सागर जब धरती खोती हैअपना सूक्ष्म अस्ति भाव तब बनती है सुगंध और रंग इस जगत में सुगंध होने के लिए

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तब, यही तो होना था

जो कि एहसास-ए-कमतरी का होना था पता नहीं, ज़िंदगी का ये कौन-सा कोना था जिसमें सिर्फ़, होना था कि सिर्फ़ रोना था? और अगर सिर्फ़ रोना था तो फिर होना क्या था?

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सहयात्रा के पचहत्तर वर्ष

जब आया जलजला पाँव काँपने लगे डर से बढ़ कर थाम लिया हमने इक दूजे को कर से कितना कुछ टूटा-फूटा पर हम न कभी रीते

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