दिखाई देता है

अजीब शाम का मंजर दिखाई देता है जब आफताब जमीं पर दिखाई देता हैमुझे तो नीलगगन के विराट आँगन में हसीन चाँद पे इक घर दिखाई देता है

और जानेदिखाई देता है

नई धारा संवाद : प्रेम जनमेजय (व्यंग्यकार)

अपनी साहित्य-साधना के लिए अनेक सम्मानों से विभूषित डॉ. जनमेजय से ‘नई धारा संवाद’ के तहत बीते दिनों मनमीत नारंग ने ऑनलाईन बातचीत की,

और जानेनई धारा संवाद : प्रेम जनमेजय (व्यंग्यकार)

अभी वक्त लगेगा

पत्थर को पिघलने में अभी वक्त लगेगा अंदाज बदलने में अभी वक्त लगेगाबेवक्त भला रात कहाँ जाएगी आखिर सूरज को निकलने में अभी वक्त लगेगा

और जानेअभी वक्त लगेगा

सिर्फ उम्मीद पर टिकी मिट्टी

सिर्फ उम्मीद पर टिकी मिट्टी कुछ नये ख्वाब देखती मिट्टी उड़ लो जितना यहीं पे आओगे कह रही है जमीन की मिट्टी

और जानेसिर्फ उम्मीद पर टिकी मिट्टी