क्या कहलवाना चाहते हो
तुम मुझे एक कप चाय पिलाके मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो
तुम मुझे एक कप चाय पिलाके मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो
सीमाओं में रह कर चल अच्छा पहले अंदर चलसब तन-तनकर चलने लगें इतना भी मत झुककर चल
मेरा यही रूप मेरी लिए बेड़ी बन चुकी है दीदी। मन तो करता है अपने चेहरे को जला दूँ। जहाँ जाती हूँ, वहीं ताना सुनना पड़ता है।
वीथिका अपनी मित्र भारती दत्त के साथ यहाँ आकर देर से खड़ी चढ़ती गंगा को देख रही थी। जून माह का यह आखिरी दिन है। ग्रीष्मावकाश है। परिसर खाली है।
बस आखिरी यही तो इक रस्ता है, बात कर यों चुप्पी साधने से तो अच्छा है, बात करपिघलेगी बर्फ कर भी यकीं हो न यूँ उदास क्यूँ सर को थाम के यहाँ बैठा है, बात कर
अरसे बाद सिराज को देखकर टुटुल मुस्कुराया। सिराज अपने पिता के पीछे खड़ा था। वह काफी लंबा हो गया है, उसकी पतली मूँछें भी उगने लगी थी। सिराज के पिता बटरफ्लाई मॉल के दरबान के आगे हाथ जोड़कर कह रहे थे।