चाहे कुछ भी करो

चाहे कुछ भी करो, नहीं आती शर्म इनसान को नहीं आतीरात आधी गुजर चुकी लेकिन मैं बुलाता हूँ, वो नहीं आतीमुझपे दीवानगी का है इल्जाम नींद तुमको भी तो नहीं आतीदिल ये जाता है, लौट आता है जां चली जाए जो, नहीं आती

और जानेचाहे कुछ भी करो

कहीं खोया हूँ मैं

कहीं खोया हूँ मैं, तू गुम कहीं है ये मंजर आज भी कितना हसीं हैमुहब्बत आपसे करने की खातिर जरूरत आपकी मुझको नहीं हैनिकल कर आपकी बाहों से पाया

और जानेकहीं खोया हूँ मैं

जागती आँखों में कुछ सपने

जागती आँखों में कुछ सपने लिए आ जाइए हम जलाएँगे उम्मीदों के दीये, आ जाइएसीख लीजे मुश्किलों में खिलखिलाने का हुनर लब पे गम की दास्ताँ मत लाइए, आ जाइएगड्डियों में ताश की हर दर्दो-गम को फेंटकर ढूँढ़ लेंगे सर्किलों के जाविये, आ जाइए

और जानेजागती आँखों में कुछ सपने

भले आय नहीं

भले आए नहीं तुमको किसी अंजाम की खुशबू फिजा में खुद ही फैलेगी तुम्हारे काम की खुशबूतुम्हीं माने नहीं और चल पड़े ऊँची दुकानों में मुझे तो आ रही थी खूब ऊँचे दाम की खुशबू

और जानेभले आय नहीं

भारतीय समाज के जाति-रंग

जाति को अच्छा बुरा कहना किसी को नहीं भाता। इसे व्यक्तिगत मान लिया जाता है। लेकिन एक जाति के अधिसंख्य लोगों का स्वभाव व व्यवहार दूसरी जाति के प्रति एक जैसा हो तो वह जातिगत क्यों नहीं माना जाए? बहन माया, माया की मजूरी और सियाराम जाट का बेटा चमारिन माया की मजूरी और सियाराम जाट का बेटा चमार।

और जानेभारतीय समाज के जाति-रंग

क्या थे किरदार क्या कहानी थी

क्या थे किरदार क्या कहानी थी वो भी क्या खूब जिंदगानी थीखूबसूरत जड़ें सितारे थे उसकी चादर जो आसमानी थीएक ठोकर पे था जहाँ सारा वो भी क्या जोश क्या जवानी थीघर था बेटे का, चुप ही रहना था उम्र ढलती हुई बितानी थी

और जानेक्या थे किरदार क्या कहानी थी