इस कदर कुछ जख़्म
नींद! चादर ओढ़कर खुद सो गई उफ्फ्! खुमारी से लदा चहरा हुआथा मुसीबत का ख़जाना सामने आँख चौंध कान भी बहरा हुआरोज मिलना था जिसे चौपाल पर वो कबीला में दिखा ठहरा हुआ
नींद! चादर ओढ़कर खुद सो गई उफ्फ्! खुमारी से लदा चहरा हुआथा मुसीबत का ख़जाना सामने आँख चौंध कान भी बहरा हुआरोज मिलना था जिसे चौपाल पर वो कबीला में दिखा ठहरा हुआ
ईश्वर को जो लोग कब्जा रहे होते हैं वे दरअसल उसकी सत्ता की इयत्ता को बखूबी जान-समझ रहे होते हैं ईश्वरी सत्ता की ओट में जनसत्ता के घोटक की लगाम मजबूती से थाम रहे होते हैं
‘शरद जुन्हाई बिछ गई, अन्हियारे के देश, तेरे चरणों का हुआ, जब-जब यहाँ प्रवेश, कर हस्ताक्षर धूप के, खिला गुलाबी रूप चले किरण दल पाटने, अंधकार के कूप।’
अपने नवसृजित सम्मान के कुछ शुरुआती अंकों को उन्होंने उन पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों पर वारा जो उनकी घासलेटी रचनाओं को घास तक नहीं डालते थे फिर तो उनकी और उनकी थैली के चट्टों-बट्टों की कूड़ा रचनाएँ भी हाथोंहाथ ली जाने लगीं यकायक
गाँव का किसान जैसे हुक्का चढ़ाये अपनी ठंड को मिटाता, तंबाकू की अज़ीब खुमारी में डूबा हुआ! काश मैं भी इस वक्त उसी किसान के पास बैठा ऐसे गदराये मौसम में तंबाकू की खुमारी का लुत्फ़ उठाता!
तुम्हारे ईश्वर ने ही एक दिन कहा था मुझसे– मत आना मेरे पास कभी तुम!यदि तुम अपने ख्यालों, एहसासों, संकल्पों में पूरी आस्था, पूरे समर्पण