मुहब्बत हमारी सजा दे गई है

अजब रौशनी-सी बिखर के जिगर से नई जिंदगी की अदा दे गई हैकहाँ साथ देता जहाँ हमसफर-सा इबादत मगर हर दुआ दे गई हैचले हैं सभी हमक़दम मरहला को मगर चाल उनकी दगा दे गई है

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देश को दुकान मत करो

खूब दिलेरी दिखा मगर खँडहर मकान मत करोभीलनी से राम तर गए इस तरह गुमान मत करोजो हुआ हँसी मजाक में पर लहू लुहान मत करो

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गजब के फैसले होने लगे

मिला जब कुछ नहीं खलिहान से जमीं पर आसमां बोने लगेपसीने की कमाई क्या कहें नजर के सामने खोने लगेकिसी ने शील को सीता कहा जमाना दूध से धेले लगे

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यही बात पहले कही होती

अदब से प्रभु पेश आते तो अहल्या सलामत रही होतीअगर व्याकरण ही नहीं होता नदी बहता, खट्टी दही होतीलगी आग सीता परीक्षा में पुरुषों की होती, सही होती

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लगाती हैं किसानी दाँव

फकत अरमान के दानें वो बोते नर्म माँटी में कभी पुरबा कभी पछुवा, गई ललकार ये मौसमनिकल कर झाँकता है बीज का नवजात सा कल्ला उसी के साथ सौ दुश्मन लिए अवतार ये मौसमहथेली पर टहलती खेत की हँसमुख नई खुशियाँ मगर लेकर कोई भाग झपट्टामार ये मौसम

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दादा का लगाया नींबू पेड़

दुख की घड़ी में एक टुकड़ा साथ क्या माँगा इस नींबू माँगकर बीमार दादी के लिए पड़ोसी नकछेदी साव को लगा था कि दादा ने जान ही माँग ली उसकी जबकि नकछेदी के साँवरे बदन पर लकदक साफ शफाक धोती कुर्ता जो शोभायमान देख रहे हैं आप उसकी बरबस आँख खींचती सफाई दादा के कारीगर हाथों की करामात ही तो है।

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