खल साहित्यिकों का छलवृत्तांत

अपने नवसृजित सम्मान के कुछ शुरुआती अंकों को उन्होंने उन पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों पर वारा जो उनकी घासलेटी रचनाओं को घास तक नहीं डालते थे फिर तो उनकी और उनकी थैली के चट्टों-बट्टों की कूड़ा रचनाएँ भी हाथोंहाथ ली जाने लगीं यकायक

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तंबाकू की खुमारी

गाँव का किसान जैसे हुक्का चढ़ाये अपनी ठंड को मिटाता, तंबाकू की अज़ीब खुमारी में डूबा हुआ! काश मैं भी इस वक्त उसी किसान के पास बैठा ऐसे गदराये मौसम में तंबाकू की खुमारी का लुत्फ़ उठाता!

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जरूर आऊँगा तुम्हारे पास

तुम्हारे ईश्वर ने ही एक दिन कहा था मुझसे– मत आना मेरे पास कभी तुम!यदि तुम अपने ख्यालों, एहसासों, संकल्पों में पूरी आस्था, पूरे समर्पण

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कमजोरियाँ स्वीकारते हुए

स्वीकारता हूँ मैं अपनी वो तमाम कमजोरियाँ जो गिनाना चाहती हो तुम मुझमेंपर क्या तुम जानती हो मेरी तमाम कमजोरियों में एक बड़ी कमजोरी तुम भी हो?

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समझ लेते हँसी का राज़

यहाँ क़ीमत हर इक शय की अदा करनी ही पड़ती है ये अच्छा है कि एहसाँ दूर तक ढोना नहीं होतावो अपनी राहों में ख़ुद ही बिछा लेता है काँटे भी हमें दुश्मन की ख़ातिर ख़ार भी बोना नहीं होताहमारे खूँ-पसीने से ही फसलें लहलहाती हैं यहाँ जादू नहीं चलता यहाँ टोना नहीं होतापरिंदों के बसेरों में न दाना है न पानी है ज़मा करते नहीं हैं जो उन्हें खोना नहीं होता

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शब्द-शब्द रचता है!

ढहता है कगार मेरे भीतर जब मैं खिलता हूँ! शब्द-शब्द रचता है जीवन जब मैं लिखता हूँ!प्रभंजन, हवाएँ बहती हैं मेरे भीतर, जब मैं लिखता हूँ!

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