कमजोरियाँ स्वीकारते हुए
स्वीकारता हूँ मैं अपनी वो तमाम कमजोरियाँ जो गिनाना चाहती हो तुम मुझमेंपर क्या तुम जानती हो मेरी तमाम कमजोरियों में एक बड़ी कमजोरी तुम भी हो?
स्वीकारता हूँ मैं अपनी वो तमाम कमजोरियाँ जो गिनाना चाहती हो तुम मुझमेंपर क्या तुम जानती हो मेरी तमाम कमजोरियों में एक बड़ी कमजोरी तुम भी हो?
यहाँ क़ीमत हर इक शय की अदा करनी ही पड़ती है ये अच्छा है कि एहसाँ दूर तक ढोना नहीं होतावो अपनी राहों में ख़ुद ही बिछा लेता है काँटे भी हमें दुश्मन की ख़ातिर ख़ार भी बोना नहीं होताहमारे खूँ-पसीने से ही फसलें लहलहाती हैं यहाँ जादू नहीं चलता यहाँ टोना नहीं होतापरिंदों के बसेरों में न दाना है न पानी है ज़मा करते नहीं हैं जो उन्हें खोना नहीं होता
ढहता है कगार मेरे भीतर जब मैं खिलता हूँ! शब्द-शब्द रचता है जीवन जब मैं लिखता हूँ!प्रभंजन, हवाएँ बहती हैं मेरे भीतर, जब मैं लिखता हूँ!
कभी मोरनी, शेरनी सी छोटा गजब ढा रही है चलो गाँव मेंकई साल मौसम रूलाया तो क्या अभी भा रही है चलो गाँव मेंनहीं और बंधक रहेगी हँसी चली साथ देखो, चलो गाँव में
वैसे भी क्या रखा है अब इन घीसी-पीटी पुरानी बातों की बतकही मेंहाँ इतना भर जरूर कह सकता हूँ एक लंबे अंतराल के बाद तुमसे अलग रहते हुए घर से काम पर जाने और काम से घर लौटने के रास्ते में एक पेड़ की तरह थी तुम मेरे लिए
क्या हुई खामोशियाँ कि झर गई पत्तियाँ सारे दरख्तों की, मेरी नजर में यूँ कैसे इसके पतझर हो गया!धूप थी खिली चटक कोई साया पसर गया, मेरे वजूद में आकर आहिस्ता-से कोई फूल खिल गया!