जरीवाला जाकेट

जैसे ही जूठी प्लेटें उठाकर एक ओर रखे ड्रम में डालने के लिए जग्गू झुका कमर में दर्द की एक लहर ऊपर से नीचे तक दौड़ गई। एक आह निकली जो सिर्फ उसने सुनी। बाकी सब तो मस्ती में डूबे थे। दुःख उसका अपना था। जग्गू को न ड्रम से आ रही जूठन की गंध ने छुआ, न नीम के पेड़ से ड्रम में झरी नीम की पत्तियों ने। छुआ होता तो पता चलता कि कड़ुवाहट कहाँ ज्यादा घुली है–पत्तियों में या खुद उसके अंदर! पर अपनी पीर लिए वह देर तक वहाँ खड़ा नहीं रह सकता था। केटरर हरनाम सिंह देख लेता तो काम-चोरी के लिए डाटता या आइंदा काम पर न आने का फरमान जारी कर देता। लँगड़ाता हुआ, जग्गू फिर से स्वागत-समारोह में आए अतिथियों के बीच जाकर जूठी प्लेटें इकट्ठी करने लगा। उसे प्रभु पर, यदि वह कहीं है तो, क्रोध हो आया। क्यों उसने...लकवे के हल्के अटैक के कारण उसके बाएँ पैर को कमजोर कर दिया। इस विकलांगता की वजह से ही उसे वेटर का पद न देकर केवल प्लेटें उठाने का काम दिया गया।

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महकी हुई बहार में फूलों

महकी हुई बहार में फूलों की राह से चूमा है मेरा नाम किसी ने निगाह सेवो जो है एक हर्फ तेरी याद से जुड़ा निकला नहीं है आज भी मेरी पनाह सेसच फिर से मुजरिमों के ही पैरों पे जा गिरा हासिल न कर सकी जो अदालत गवाह से

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पहाड़ों के बीच

हल्के हरे रंग और सुनहरे रंग की पत्तियों के बीच झाँकते, मुस्कुराते, खिड़की से आती हवा के झोंकों से सिहरते इन फूलों के बीच दिन में न जाने कितनी बार झाँक उठती है अंजलि।

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नामसुख

उनका आपसी स्वनाम पुकार–व्यापार मुझ वर्णाधम को भी बेतरह भाया इसमें मैंने नाम-सुख पाया सो मैंने भी अपने लिए उनसे गाँधी–प्रिय पुकारू नाम–हरिजन कहकर बुलाने का अनुरोध फरमायाइस पर उन दोनों ने पहले तो ठहाका लगाया पर न जाने क्यों एकबारगी उनके चेहरे का रंग उतर आया

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वह कौन थी

‘स्वाल है, हम क्या बचाणा चाहते हैं और क्या बच पाता है। एक-एक कर प्यारी लगने वाली चीजें हमें फेंकनी पड़ती हैं, ताकि गढ्डा हल्का हो, हम भेड़ियों से जाण बचाकर भाग सकें। अब अपणा ही देखो, बची भागवंती, पेट में की निशानी, माने मैं उसकी बेटी लाजो, और...दादा जी का हुक्का। गुजरे जमाने की यादें ताजिंदगी ढोया करे हैं हम जबकि खुद को ही ना ढोया जावे...और यादों को ढोने का जज्बा...? भौत-ई खतरनाक है ये जज्बा भौत-ई खतरनाक! बचा तो पाते नहीं, मुफत में कुछ और गँवा आते हैं हम। हाय रे भाई जित्तू और बूआ नीलू! चाहते तो वे पहले भी भाग सकते थे। तब इन्हें बचा लेते हम मगर वो...पुश्तैनी हुक्का! एक निशानी बचाने के लिए सारी निशानियों को मिट जाने दिया हमने।

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ईश्वर बनाम मनुष्यता

बुद्ध महावीर जैसे अकुंठ मनुष्यता के धनी महापुरुषों के अनन्य अनुपमेय कर्मों को ईश्वरीय का नाम दे ईश्वर के नाम पर महिमामंडित कर वस्तुतः ईश-रचयिताओं ने इन्हें ओछा अनअनुकरणीय बनाने की ही की है सफल कोशिश और सामान्यजन की समझ को जाँचा-परखा है

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